Sunday, May 14, 2017

एक-चालीस की आखिरी लोकल ... !

अक्सर छूट जाती हैं
बहुतों की
एक-चालीस की आखिरी लोकलें,

फिर स्टेशन के ...
अंदर .. बाहर
मंडराने ... के सिबाय ..
उनके पास ... कुछ बचता नहीं है,

कुछ पश्चाताप ..
कुछ प्रायश्चित ..
भी साथ होता है .. जो ...
दिमाग को झंकझोरते रहता है,

इसी बीच ..
कुछ कोमा में चले जाते हैं
तो कुछ .. अर्द्ध-विक्षिप्त हो जाते हैं,

बहुत बुरी स्थिति हो जाती है
मन की .. तन की ...
एक-चालीस की आखिरी लोकल छूट जाने से,

वो इसलिये कि -
मेल .. एक्सप्रेस .. सुपर-फास्ट .. इत्यादि ...
पहले ही छूट चुकी होती हैं ... !!!

( नोट - यहाँ आखिरी लोकल से अभिप्राय आखिरी प्रेमिका से है .. हुआ दरअसल ये कि दो दिन पहले मेरे एक मित्र की आखिरी प्रेमिका की शादी हो गई ... बातचीत के दौरान जब मुझे पता चला तो मेरे जेहन में मुम्बई की आखिरी लोकल बिजली की तरह कौंध पडी ... फिर लिखते लिखते .. बाद के हालात पे एक कविता बन गई ... जो आपके समक्ष प्रस्तुत है .... )

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