खून-औ-स्याही की कद्र करो
अभी खूब इंकलाब बाकी हैं ?
लफ्फाजियों का दौर है 'उदय', लफ्फाजियों की बस्ती है
क्या तिगड्डा, क्या चौगड्डा, क्या गली, क्या चौबारा ?
…
कसम उनकी भी लाजवाब है 'उदय'
तड़फ-तड़फ के मर जायेंगे पर हमें न पुकारेंगे ?
…
( मित्रो, आजकल मैं इस ब्लॉग पर भी उपस्थित हूँ … आप सभी का सादर स्वागत है …
http://shyamkoriuday.blogspot.in/ .
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