Tuesday, July 29, 2014

ये दिल्ली है ...

कुछ इस तरह का है नाता हमारा
वो यादों में हैं औ हम साये में हैं ?
गर कोई दीवार है बीच हमारे, तो उसे गिरा दो
हम हिन्दोस्तानी हैं, हिन्दू-मुसलमान नहीं हैं ?
फिर वही जख्म, फिर वही मल्हम
क्यूँ इक बार खंजर उतार नहीं देते ?

भटक रहे हैं, कुछ देर और भटकेंगे
फिर हम भी, ठिये पे मिल जाएंगे ?
ये दिल्ली है, दिल्ली की दुकानें हैं 'उदय'
यहाँ कुछ सस्ता, तो कुछ मंहगा है ??
...

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