Wednesday, April 2, 2014

तबज्जो ...

जब जी-हुजूरी और चमचागिरी ही मकसद था 'उदय' 
तो जरुरत क्या थी उन्हें, कवि या लेखक बनने की ? 
… 
उन्ने प्रचार की जगह दुस्प्रचार को तबज्जो दी है 
अब 'खुदा' ही जाने, कैसे हो पक्की जीत उनकी ?
… 
लो 'उदय', सोशल साइट्स सोशल न हुईं घर का आँगन हुई हैं 
पति पत्नियों को, और पत्नियां पतियों को प्रमोट कर रही हैं ? 
… 
वैसे, इस बार तो सत्ता पे उनका हक़ था 'उदय' 
मगर अफसोस, उनका तरीका गलत निकला ?
उन्ने, उन्ने, उन्ने, उन्ने,…… सिर्फ दल ही तो बदली है 'उदय' 
कोई गुनह थोड़ी न किया है, जो वे राष्ट्रीय सुरक्षा को खतरा हों ?

2 comments:

Rajendra kumar said...
This comment has been removed by the author.
Pratik Maheshwari said...

चुनावी मौसम का खुमार यहाँ भी झलक और छलक रहा है :)