Saturday, February 8, 2014

स्वयं-भू ...

चलो आज से, चित तुम्हारी और पट हमारी 
जनता तो मूर्ख है, सिक्का तो उछालेगी ही ? 
… 
उनको भी हक़ है, और उनको भी हक़ है 
सम्मान लेने, और देने का 
आखिर दोनों … स्वयं-भू जो हैं ?????
… 
अब जब, वो एजेंट हैं तो हैं, इसमें संशय कैसा  
बस, कोई उनसे, मालिकों सी उम्मीद न करे ? 
… 
चोरी-औ-उचक्काई में, उनका कोई सानी नहीं है 
मगर अफसोस, वो आज, एक कद्दावर नेता हैं ?
… 

1 comment:

देवदत्त प्रसून said...

वसंत-काल की सभी मित्रों को कोटि कोटि मीठी मीठी वधाइयां !
आप की यह रचना रोचक है !