Tuesday, September 24, 2013

आतृप्त ...

जी चाहता है 
ठोक दूँ … दो-चार को … 
पर सोचता हूँ 
दो-चार को ठोकने से क्या होगा ?

क्योंकि - 
जिन्हें ठोकना चाहता हूँ 
उनके जैसे 
दो-चार नहीं, हजारों हैं ??

गर सबको नहीं ठोका तो 
मन नहीं भरेगा 
आत्मा शांत नहीं होगी 
आतृप्त भटकता रहूँगा ???

1 comment:

प्रवीण पाण्डेय said...

सबको अपनी शान्ति सुहाये