Saturday, March 9, 2013

हाय-तौबा ...


लो, मुहब्बत हुई भी तो उनसे हुई 
जिन्ने, पहले से ही अपनी सुपाड़ी ले रखी थी ? 
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जो बेसहारों के सहारे होने का दम भर रहे हैं 'उदय' 
वो तो खुद ही, किसी न किसी के......सहारे पे हैं ? 
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आओ, चलें.........कुछ जज्बात बेच दें हम भी 
वैसे भी, हमें कौन-सा मुरब्बा बनाना है उनका 
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न्याय की कहाँ दरकार थी उन्हें 
वे तो, मुआवजे के लिए हाय-तौबा मचा रहे थे 'उदय' ? 
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