Friday, March 15, 2013

टेड़ी की टेड़ी ...


उनकी खुशी के, कोई मिजाज तो देखे 'उदय' 
मंद-मंद मुस्कुराते हैं परेशां देख कर हमको ? 
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तुम उंगली पकड़ लो, या पगडंडी पकड़ा दो 
फिर देखें, कैसे भूलते हैं हम घर तुम्हारा ? 
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हदों में होते, तो वो हदें पार करते 
दुम कुत्ते की, रहेगी टेड़ी की टेड़ी ?
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कुछ तो बोलो मियाँ, मौला, मेरे परवरदिगार 
खब्बीसों को,.........क्यूँ मिला ऊँचा दरवार ?
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तुम्हारा दिल है,....................तुम्हारी मर्जी 
पर, किसी और को चाहा, तो उसकी खैर नहीं ? 
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