Thursday, September 20, 2012

सौदा ...

पूजो, पूजते रहो, उनकी आत्मा को सुकूं मिले
सुनते हैं 'उदय', जीते-जी बहुत तड़फे हैं वो ?
...
पगडंडी पकड़, तू चल-चला-चल
बहुत, टेड़ा सफ़र है जिंदगी का ?
...
कलम थामे हुए भी वो गुमशुम खड़े हैं
डरे हैं खुद, या डरा रहे हैं हमको ?????
...
हम तो तभी से, बिकने को उतावले खड़े हैं 'उदय'
पर, बगैर बिचौलिए के सौदा मुमकिन नहीं लगता ?
...
अब तुम वजह-बेवजह का रोना छोडो
आओ, चलें, जी लें ... किसी के लिए ?

2 comments:

Majaal said...

बहुत दिनों बाद आपके ब्लॉग पर आना हुआ. आपकी शैली कुछ बदली हुई सी नज़र आती है. अच्छा प्रयास है. जारी रखिये.
हिंदी डिस्कशन फोरम - अपने प्रिय विषयों पर चर्चा करिए -हिंदी में !

Rajesh Kumari said...

बढ़िया प्रस्तुति उदय का प्रयोग सिर्फ एक बार हो तो रचना में सुन्दरता बनेगी