Monday, September 10, 2012

संकोच ...

कर्म में ... फल छिपा है 
दान में ... पुण्य छिपा है 
भक्ति में ... भगवान छिपे हैं 
फिर संकोच कैसा ? 
चलो ... उठो ... बढ़ो ... 
कदम बढाएं ... 
फल ... 
पुण्य ... और - 
भगवान ... की ओर !!