Friday, June 15, 2012

चार काँधे ...


जी तो चाहता है हमारा भी, प्यार में डूब जाने को 
मगर अफसोस, कहीं कोई समुन्दर नहीं दिखता ? 
... 
अभी तक तो मुडेर पे, कोई बैठा ही नहीं है 
मगर फिर भी, कहीं पे चाँव-चाँव, तो कहीं पे काँव-काँव है ?
... 
जिन्ने झूठी मुहब्बत पे, सच्ची दोस्ती कुर्बान की थी 
उफ़ ! आज उनके जनाजे को, चार काँधे नहीं मिले !!
... 
हम गरीब हैं पगड़ी, कोई हंसी के चुटकुले नहीं 
जो तेरे बत्तीसी आंकड़ों पे तालियाँ गूँज जाएं ? 
... 
कदम कदम पे भरम हो जाता है हमको 
किसी न किसी से, तेरी चाल या अदाएं मिल ही जाती हैं !

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