उलझन मेरी अब दूर कर दो तुम सनम 
मैं आशिक हूँ या नौकर हूँ ज़रा खुल के कहो ? 
... 
मर्जी है तुम्हारी, शो-केस में रख दो कहीं 
अब आदमी नहीं, मैं खिलौना हो गया हूँ !
... 
ढूंढा ... ढूंढा ... ढूंढा जग में, कहीं कबीर नजर नहीं आए 
ज्यों ढूंढा मन की अंखियों में, त्यों कबीर-कबीर ही भाए !
... 
यकीनन, मुझे यकीन है तुम पर 
गर चाहो, तो आजमा लो ? 
... 
टकराना तो इत्तफाकन ही हुआ था 'उदय' 
जानता कौन था कि वो हमसफ़र हो जाएंगे !
 
 
2 comments:
उलझन मेरी अब दूर कर दो तुम सनम
मैं आशिक हूँ या नौकर हूँ ज़रा खुल के कहो ?
बड़ा ही सपाट..
टकराना तो इत्तफाकन ही हुआ था 'उदय'
जानता कौन था कि वो हमसफ़र हो जाएंगे !
गजब का इत्तेफाक!!!
सुज्ञ: एक चिट्ठा-चर्चा ऐसी भी… :) यहाँ आपकी पोस्ट का उल्लेख है।
Post a Comment