Monday, April 9, 2012

जंग ...

न जाने क्यूँ ? तेरे वादों पे बार बार एतबार हो जाता है हमको
जबकि जानते हैं हम, तुम कितने फरेबी हो !!
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गर, ये जंग सरहदों की होती, तो कब की सुलझ गई होती
जंग है तो 'उदय', पर सिर्फ ख्यालातों की है !!
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सच ! अब किसे क्या मिल जाएगा आईना दिखा कर
कौन है जो नहीं जानता सूरत में छिपी सीरत अपनी ?
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कोई भी तो बेखबर नहीं है 'उदय' जहन्नुमी यातनाओं से
मगर फिर भी, कदम-दर-कदम गुनाह कर रहे हैं लोग !!

1 comment:

प्रवीण पाण्डेय said...

सब यहीं जी लेना चाहते हैं बस।