Tuesday, February 7, 2012

रोज-डे ...

'रोज-डे' के आज हंसी मौके पर
काँटों की डगर, पांव रखना था !
मुहब्बत तो है, भले बयां न सही
गुलाब किताब में छिपा देना था !

1 comment:

प्रवीण पाण्डेय said...

मन में जाने कितने अरमान ऐसे ही दबे रह जाते हैं।