Saturday, December 10, 2011

... हमें अपना दुश्मन समझता है !!

अड़ रहे हैं, भिड़ रहे हैं, लड़ रहे हैं, गढ़ रहे हैं
सत्य के ये पग हमारे, धीरे धीरे बढ़ रहे हैं !!
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ठीक ही रहा, जो समय पे, तुमने नाक सिकोड़ ली
वर्ना हम तो तुम्हारी दोस्ती के, कायल हुए थे !!
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'रब' जानता है, नीयत में खोट है किसकी
वर्ना, बेवजह यूँ तिलमिलाहट न होती !
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'खुदा' ही जाने है, हालात मेरे दिल के
न दिन को सुकून है, न रातों को चैन है !
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जब तक तेरा बसर था, मेरा हुआ था दिल
जब से चले गए हो, काफिर हुआ है दिल !
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कैसे मान लें, ये मर जाएंगे चुल्लू भर पानी में
ये न भूलो, कि ये मच्छर हैं, जन्मे हैं वहीं पर !
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खता नहीं थी उनकी, न कुसूर अपना था
जिस्म की आग थी, सुलगना जायज था !
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सिर्फ सदियाँ नहीं, युग याद रखेंगे
ये अल्फाज नहीं, जज्बात हैं मेरे !
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सच ! कल फिर, एक नए दोस्त से मुलाक़ात हो गई यारो
मगर अफ़सोस, वो अभी हमें अपना दुश्मन समझता है !!
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उफ़ ! चिलचिलाती धूप, और ये रेतीली राहें
नंगे पैर सही, पर फासला तो तय करना है !

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