कैसे कह दें, आशिकी से परहेज है हमको 
कोई चाहता तो है, पर खामोश रहता है !
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हे 'खुदा' ये मुहब्बत है, या कोई सजा है 
धड़कनें तेज हैं, और बड़ी बेचैनियाँ हैं !!
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'खुदा' ही जाने, ये कैसी क़यामत है 
उधर वो कुछ नहीं कहती, इधर हिम्मत नहीं होती ! 
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न जाने किन गुनाहों की सजा हमको मिली है 
मुहब्बत भी हुई है, नफ़रत भी हुई है ! 
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मिलो तो बेचैनी, न मिलो तो बेचैनी 
कोई समझाए हमें, मुहब्बत का ये कैसा सबक है !
1 comment:
मिलो न तुम तो हम घबराएं...
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