Monday, November 21, 2011

कदम खुद ब खुद यहाँ चले आए ...

एक नई पुस्तक की रचना में व्यस्त ... टाईटल - 'गेट वे आफ इंडिया'
इसी पुस्तक के कुछ अंश ...
" ...

'शब्दों के जादूगर' को यह नाचीज सलाम करती है !
अरे, वाह ... खुशनसीबी हमारी जो ... जो शाम ढलने के पहले ही चाँद नजर आया है हमें !
बस, यही तो अदाएं हैं तुम्हारी कातिलाना ... बातों ही बातों में अपना बना लेते हो !
चलो, अब तुम दोबारा मिल ही गई हो तो अपना पहली मुलाक़ात का किया वादा निभा देते हैं ... इससे पहले की शाम ढल जाए खुद ही नजरें ऊपर उठाकर देख लो और जान लो नाम हमारा ... सारी कायनात में बिखरा हुआ है !

हिना अपनी नजरें ऊपर उठाकर चारों ओर निहारने लगती है ... कुछ पल को खामोश हो सोचने लगती है ... फिर अचानक बोल पड़ती है ...
अच्छा तो ये बात है ... आकाश !
खुदा ने तुम्हें यूँ ही खूबसूरती नहीं बख्शी है हिना, तुम जितनी खुबसूरत हो उतनी ही इंटेलिजेंट भी हो ... यस, आकाश ... आओ बैठो, कब तक खड़ी रहोगी !
मतलब इस धड़कते दिल ने हमें दोबारा मिलवा ही दिया ... थैंक्स, गेट वे आफ इंडिया !
हिना एक बात बताओ, आज यहाँ तुम यूँ ही घूमने आई हो या कोई और वजह भी है, आई मीन तुमने पहली मुलाक़ात में कहा था कि जब तुम कुछ छोटे-मोटे तनाव में होती हो !
नहीं, आज ऐंसी कोई बात नहीं है ... बस जी ने चाहा और कदम खुद ब खुद यहाँ चले आए !
वाह, बहुत खूब ... ज़रा जी पर, और कदमों पर बंदिशें रखी जाएं !
बंदिशें तो बहुत रखी हैं, पर आज न जाने क्यूँ ... शायद दिल और कदमों ने तुम्हें चुना हो !
संभव है ऐंसा हो ... तो चलो हाँथ मिलाया जाए दोस्ती का !

दोस्ती का हाँथ मिलाने की बात सुनते ही हिना ख्यालों में चली जाती है, तब आकाश कहता है ...
अच्छा, ये बात है हाँथ मिलाने से परहेज हो रहा है, या शायद हमारी दोस्ती से !
नहीं, ऐंसी बात नहीं है ... मैं तो यह सोच रही थी कि जब होंठ से होंठ पहली मुलाक़ात में ही मिल गए हों तब हाँथ मिलाना तो महज एक औपचारिकता से ज्यादा नहीं होगा, क्यूँ न गले लग कर दोस्ती की जाए !
कहते कहते हिना खुद ब खुद आकाश के गले लग जाती है, और दोनों एक दूसरे में कुछ पल को समा जाते हैं ...
... "

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