Sunday, November 6, 2011

बंधन ...

तुम औरत हो
मैं तुम से पूंछता हूँ -
कहाँ हैं बेड़ियाँ !
कहाँ हैं हथकड़ियाँ !
कहाँ हैं जंजीरें !
बंधन -
कहाँ नहीं हैं ?
जीवन में, संसार में !

रात बंधन में है
दिन बंधन में है
चाँद-सूरज भी तो बंधन में हैं
अपने अपने समय पे -
निकलते हैं, और डूब जाते हैं !

आदमी भी कहाँ स्वछंद है
जो
औरत को -
आजादी की जरुरत है !
सिर्फ औरत नहीं -
आदमी भी बंधन में है !

चाँद, तारे, फूल, खुशबू
सूरज, पवन, गगन, जीवन, मृत्यु
सब के सब -
कहीं न कहीं, कुछ न कुछ
बंधन में है !
सिर्फ औरत नहीं -
ये सारा संसार बंधन में है !!

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