Saturday, November 26, 2011

मृत्यु ही मेरा मोक्ष है ...

मैं अब और, एक दिन भी
जीना नहीं चाहता हूँ
तुम मुझे फांसी दे दो
मेरे हांथों ढेरों बेगुनाह मारे गए हैं
मैंने गुनाह किये है
सच ! मैं मर जाना चाहता हूँ !!

मैंने बम फोड़े, गोलियां चलाई हैं
मैंने खून बहाया है
मैंने ढेरों जानें ली हैं
हाँ, मैं गुनहगार हूँ
मुझे क्यूँ ज़िंदा रखे हुए हो !
सच ! मैं मर जाना चाहता हूँ !!

क्यूँ मेरी फ़ाइल तुम लोग
कस के पकड़ रखे हो
छोडो, जाने दो
मत उलझाओ मुझे
मैं खुद अब मोक्ष चाहता हूँ
सच ! मैं मर जाना चाहता हूँ !!

जो मेरे हांथों मारे गए हैं
उन सब की आत्माएं
उनके परिजनों की बद-दुआएं
मुझे सता रही हैं
मुझे सोने नहीं दे रही हैं !
सच ! मैं मर जाना चाहता हूँ !!

मृत्यु ही मेरा प्रायश्चित है
मृत्यु ही मेरा मोक्ष है
हाँ, मैं कह रहा हूँ
मैं अब जीना नहीं चाहता हूँ
अब तो मुझे फांसी दे दो !
सच ! मैं मर जाना चाहता हूँ !!

1 comment:

प्रवीण पाण्डेय said...

अन्ततः तो लक्ष्य वही है।