Saturday, October 8, 2011

... तो कभी कडुवे लगे हैं !!

मैं चाहत था, पर किसी के संग नहीं था
मैं कुछ तो था मगर, कुछ भी नहीं था !
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वो मरने के बाद खूब याद किये जा रहे हैं
जिन्हें जीते जी कभी पुकारा नहीं गया !
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सत्ता के लालच ने ऐंसा पाठ पढ़ा दिया
खच्चर को गधे का बॉस बना दिया !!
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लोग बे-वजह ही दौलत समेटने में मगन हैं 'उदय'
सच ! सब जानते हैं, खाली हाँथ जाना है !!
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सच ! जहां बस्ती नहीं, वहां स्कूल बन रहे हैं
अब सरकार की मंशा, कोई बताये हमको !!
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सच ! समझ समझ के फेर हैं, वही लडडू, वही शेर हैं
कभी मीठे, कभी फीके, तो कभी कडुवे लगे हैं !!
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फक्र है मुझे दुश्मनों पे, जो सामने से टकरा रहे हैं
दोस्त हैं जो बे-वजह ही, पीठ पे खंजर चला रहे हैं !
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टहलते टहलते हम कहाँ से कहाँ आ गए हैं 'उदय'
सच ! अब पीछे लौट पाना मुमकिन नहीं लगता !!
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क्यूं सोचते हो, बदन की चाह में दीवाना हुआ हूँ मैं
ये भी सोच तनिक, बिना तेरे कुछ भी तो नहीं हूँ मैं !
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कहीं ऐंसा न हो, एक चेहरे पे दूसरा चेहरा नजर आए
जिसे हम पूजने बैठें, हो पापी पर 'देवता' नजर आए !

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