Sunday, September 11, 2011

... जोश देख लो, हर जलती मशालों में !

देर से सही, बात दिल की, जुबां पे आई तो सही
क्या वजह थी शायरी की, समझ आई तो सही !
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आज ये सफ़र, मुंबई लोकल सा लगे है
उतरते-चढ़ते, धक्के-पे-धक्का लगे है !
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हम ! शायद कुछ भी तो नहीं हैं
सिर्फ एक मुसाफिर के सिवा !!
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सच ! बात कड़वी लगे, तो लगने दो
कम से कम आईना तो झूठ न बोले !
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'खुदा' जाने क्यों लोग खुद को तीस मार खां समझते हैं
आलोचना में क्या रखा है, दम है तो समीक्षा की जाए !
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बा-अदब जो कह दिया, स्वीकार है
कौन जाने फन बड़ा, या बड़ा फनकार है !
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गर फर्क होता भी तो हम समझते कैसे
जब भी देखा, अदाएं कातिलाना रहीं !
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हम आईने बदल बदल के खुदी को देखते फिरे
उफ़ ! कोई भी आईना, चेहरा बदल नहीं पाया !
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कल तक जो खामोश खड़े थे, हांथ बांध कर हांथों में
आज उन हांथों का जोश देख लो, हर जलती मशालों में !