Saturday, September 3, 2011

'हाईटेक लेखक'

एक सज्जन कुर्ते-पैजामे पहने हुए ट्रेन में मेरी सामने वाली सीट पर नजर आए स्वभाव से बेहद शांत व सरल स्वभाव के लगे उनसे बात-चीत करते-करते हुए सफ़र जारी था कि अगली स्टेशन पर एक जींस-टीशर्ट पहने हुए सज्जन भी चढ़ गए और वो सज्जन भी आकर सामने वाली खाली सीट पर बैठ गए, अब चूंकि सांथ में बैठ ही गए थे तो हम लोगों की आपस में दुआ-सलाम भी होना तय थी, जो हो गई ! फिर जींस-टीशर्ट वाले सज्जन ने अपना बैग उठाकर उसमे से लैपटाप कंप्यूटर निकाल लिया और खटर-पटर करने लगे, मुझे लगा कि बहुत ही पंहुचे हुए महाशय जान पड़ रहे हैं बिना लैपटाप के ट्रेन में भी सफ़र नहीं करते हैं, मैंने मन में सोचा - जय हो ! थोड़ी देर बाद दोनों सज्जन आपस में चर्चा-परिचर्चा करने लगे, क्या करते हो, कहाँ रहते हो, बगैरह-बगैरह ... अपना भी सफ़र उनकी बातें सुनते-सुनाते कट रहा था अचानक मैंने देखा कि दोनों महाशय कवि, कविता, और कविताओं पर गहन चर्चा कर रहे हैं, दोनों की बातें सुनने से ऐसा लगा कि दोनों एक ही मिजाज के हैं शायद दोनों कवि ही हैं ... थोड़ी देर बाद ही कुर्ते-पैजामे वाले सज्जन ने अपने कंधे पे लटके थैले में से निकाल कर स्वयं की लिखी हुई किताबें दिखाने लगे तो दूसरे सज्जन फटा-फट अपने लैपटाप में अपनी वेबसाईट, ब्लॉग बगैरह-बगैरह दिखाने लगे ... दोनों ओर से बिलकुल साहित्यिक समा जैसा बंध गया और दोनों ही प्रसन्न मुद्रा में नजर आने लगे, यह सब देख कर मुझे भी आनंद की अनुभूति हो रही थी मेरा भी सफ़र, जो आनंद में कट रहा था ... कुछ देर बाद दोनों ही तनिक मायूस से नजर आए, मैंने पूछा - क्या हो गया महाशयो, अभी तक तो बहुत ही रोचक-रोमांचक माहौल चल रहा था, फिर अचानक ये मायूसी ! ... दोनों एक सांथ बोल पड़े, क्या बताएं भाई साहब आजकल अच्छे लेखन की कोई क़द्र ही नहीं है ... मैंने कहा - सो तो है, ऐसा मैं भी सुनते-पढ़ते रहता हूँ ... अच्छा ... अच्छा ... आप क्या करते हैं .. भाई, मैं तो एक छोटा-मोटा पत्रकार हूँ ... अच्छा हाँ ... हाँ ... तब ही आप यह सब समझते हैं, लेखन क्षेत्र की इस पीड़ा को आपके जैसा छोटा-मोटा आदमी ही समझ सकता है, भाई साहब ये बताइये - अपने देश में अच्छे लेखन की कद्र क्यों नहीं है ? ... मैंने कहा - अब क्या बोलूँ, सच्चाई तो ये है कि 'हाईटेक' ज़माना है और 'हाईटेक सेटिंग' से ही काम चलता है और चल रहा है, अब भला अच्छे लेखन को कौन पूंछता है जो सामने - जी, हाँ, हूँ, यश, भईय्या, दादा, प्रणाम, चरण स्पर्श करते नजर आते हैं सही मायने में वे ही अच्छे लेखक हैं, फिर भले चाहे - लेखन अच्छा हो या न हो, आप लोग भी अच्छे लेखन के चक्कर को छोड़ 'हाईटेक लेखक' बनने के बारे में सोचिये !! ( कुछ देर सुन्न-सन्नाटे सा माहौल रहा, इसी दौरान अपुन का स्टेशन आ गया और ... नमस्कार ... नमस्कार ... नमस्कार ... कहते-सुनते अपुन ट्रेन से उतर गया !)

2 comments:

प्रवीण पाण्डेय said...

कभी पुनः मिले तो पूछियेगा कि हाईटेक लेखत क्या लिखता है?

Smart Indian said...

रोचक सफ़र रहा!