Thursday, September 1, 2011

... वरना लोग यूं ही, फना न हुए होते !!

दिल, दिलवर, दिलदार, खुश और खुशहाल हो
चंहू ओर, आँगन-आँगन, तेरी - मेरी ईद हो !!

...
जिन्होंने खुद को जला-जला कर बस्ती में उजाले किये हैं
उफ़ ! आज उन्हीं पे बस्ती जलाने के इल्जाम थोपे गए हैं !
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खुद से, खुद का, रूठकर बैठ जाना कहाँ मुमकिन
पल दो पल के तराने हैं, खुद-ब-खुद आने-जाने हैं !
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किसी ने खुद को, क्या खूब छिपा कर रक्खा है 'उदय'
होता तो है सामने, पर आँखों से छिपा होता है !
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आज कर ही दो तारीफ़ मेरी, कि ये सारे शेर मेरे हैं
भले चाहे ये निकले हों, तेरी कातिल अदाओं से !!
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हम पहले सही थे, या आज सही हैं
अब इसका फैसला होना है 'उदय' !
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सच ! कहीं कुछ तो हैं, अदाएं कातिलाना
वरना लोग यूं ही, फना न हुए होते !!
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आँख होकर भी जिन्हें, कुछ भी नहीं दिखता यारो
उनकी सीरत में, हमें खोट ही खोट दिखाई देता है !
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सच ! चलो अब तोड़ भी दो, तुम खामोशियाँ अपनी
है 'ईद' का मौक़ा, तुम्हारी न भी, हमें मंजूर होगी !!
...
कुछ हैं जो चाहते हैं, देश में बे-वजह झगड़े-फसाद हों
पर हम नहीं चाहते, फूलों की चाह में, कांटे नसीब हों !

3 comments:

kshama said...

जिन्होंने खुद को जला-जला कर बस्ती में उजाले किये हैं
उफ़ ! आज उन्हीं पे बस्ती जलाने के इल्जाम थोपे गए हैं !
Bahut umda!

भारतीय नागरिक - Indian Citizen said...

बहुत बढ़िया उदय जी..

सागर said...

behtreen gazal....