Sunday, July 10, 2011

गर होता, तो मैं 'खुदा' होता ...

ठीक ही कहता है 'उदय', दोस्ती फरेब है
समझ गए तो ठीक, न समझे तो ठीक !
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आँखें रिमझिम रिमझिम बरसें, तो ही अच्छा है
गर मुसलाधार बरस गईं, तो सुनामी का खतरा है !
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चाँद, रात, प्रेम, तुम, हम, और राहें
उफ़ ! कुछ भटका, कुछ अटका था !
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बचपन की यादें, आज भी आँखों में उतर आती हैं 'उदय'
जब जब कदम मेरे, गलियों-चौबारों से गुजरते हैं !
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उफ़ ! वो जब हमें, छू कर गुजरते हैं
फिर हर घड़ी जन्नती शाम होती है !
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पहुँच जाते हैं सभी अपनी मंजिलों पे
कभी रुकते रुकते, कभी चलते चलते !
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क्या करें मजबूर हैं, सत्ता के नशे में चूर हैं
एक, दो, तीन, नहीं, सारे खट्टे अंगूर हैं !
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दिल टूट के, टुकड़ों टुकड़ों में धड़क रहा है मेरा
पहले एक में था, अब सैकड़ों में बसर है तेरा !!
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एक लम्हा दिया था जालिम ने, आजमाने को
अब खुद जालिम, लम्हे लम्हे पे हमकदम है !
...
गर होता, तो मैं 'खुदा' होता
नहीं हूँ तो, कुछ भी नहीं हूँ !!

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