Friday, July 15, 2011

गुरुओं का गुरु !

"अक्खड़ बाबा" का एक शिष्य - कृपालु शाम को आश्रम में आते ही बाबा के प्रिय कुत्ते कालू के सामने दो अगरबत्ती जलाकर दो समोसे भेंट स्वरूप चढ़ा कर अपनी कुटिया की ओर जाने लगा ... यह सब देख बाबा जी कृपालु पर भड़क गए - साले, निकम्मे, तुझे मैंने अपना शिष्य बना कर बहुत बड़ी भूल की है जा निकल जा आश्रम से, आज से तू मेरा शिष्य नहीं रहा ... बाबा जी का क्रोध देखकर कृपालु भी सन्न रह गया, अपना बोरिया-बिस्तर समेटते हुए, धीरे से बाबा जी से पूछने लगा - हे प्रभु, मेरा अपराध क्या है जब तक आप मुझे बताएंगे नहीं, मैं पश्चाताप कैसे करूंगा ... निकम्मे, नालायक तुझसे अच्छा तो ये मेरा कालू है जो कम से कम मेरे प्रति बफादार तो है, तेरी हिम्मत कैसे हुई जो आज जैसे महापवित्र दिन पर तूने मेरा अपमान करते हुए कालू को अगरबत्ती व प्रसाद ... प्रभु क्षमा करें, मुझे माफ़ करें, मुझसे न ही कोई गलती हुई है और न ही मैंने आपका कोई अपमान किया है, "कालू" अपने आश्रम का बफादार सेवक व चौकीदार है जो रात-दिन अपनी सेवा में खडा रहता है इस नाते ही मैंने आश्रम में प्रवेश करते ही दया भाव से उसका सम्मान किया है, और आप तो साक्षात मेरे "भगवान" हैं आप मेरे "महागुरु" हैं और आपका पालतु कालू मेरा "छोटा गुरु" है, बस स्नान कर मैं आपकी सेवा में हाजिर होने ही वाला था इतने में ही आप भड़क गए, मैं अपनी इस छोटी सी कार्यशैली के लिए आपसे क्षमा चाहता हूँ कृपया मुझे क्षमा करते हुए मेरी बात सुन लें ... ( अक्खड़ बाबा तनिक नरम होते हुए शांत स्वर में बोले ) ... अच्छा सुना, आज तुझे ही सुन लेते हैं ... प्रभु आप मेरे परम गुरु हैं आपसे ही मैंने सम्पूर्ण शिक्षा ग्रहण की है किन्तु आपसे प्राप्त शिक्षा में मुझे आपके जैसा ही अक्खडपन मिला है, वर्त्तमान समय में इस अक्खड़पन के परिणाम स्वरूप जीवन चलाना कितना मुश्किल है यह आप भी भली-भाँती जानते हैं, पिछले डेढ़-दो माह पहले अपने आश्रम में खाने के लाले पढ़ गए थे तब ही मैंने आपके इस महान कुत्ते "कालू" से कुछ शिक्षा ग्रहण की थी जिसके परिणाम स्वरूप तब से लेकर आज तक अपना आश्रम खुशियों से फला-फूला है ... ( बाबा जी पिघलते हुए) ... ये तू क्या बोल रहा है कृपालु, इतनी बड़ी बात, तूने मुझसे छिपा कर रखी, अपना "कालू" ... हाँ प्रभु, मुझे याद है उन दिनों अपने आश्रम में दो दिनों तक चूला भी नहीं जला था मैं इस पीपल के पेड़ के नीचे बैठकर आश्रम और आपकी चिंता में डूबा हुआ था ठीक उसी समय दो दिन का भूखा अपना यह महान "कालू" मेरे पास आया और सामने खडा होकर "दुम" हिलाने लगा, बहुत देर तक "दुम" हिलाते रहा, ठीक उसी पल मेरे दिमाग में बिजली सी कौंधी और मुझे उसके "दुम" हिलाने के भाव से "समर्पणभाव" रूपी शिक्षा मिली, शिक्षा ग्रहण करते ही मैं भिक्षा हेतु निकल पडा, वह दिन है कि आज का दिन है हमारे आश्रम में प्रतिदिन नए नए पकवान बनते हैं सिर्फ आप, मैं और कालू ही नहीं वरन आठ-दस नए लोग भी प्रसाद ग्रहण करते हैं यह सब इस महान "कालू" से प्राप्त शिक्षा का प्रतिफल है, यदि फिर भी आपको लगता है मुझसे कोई गलती हुई है तो मैं पुन: आपसे क्षमा मांगता हूँ, मुझे क्षमा करें प्रभु ... ( बातें सुनते सुनते अक्खड़ बाबा भावुक हो गए उनकी आँखें नम सी हो गईं तथा कृपालु को गले लगाते हुए बोले ) ... पुत्र तू महान है, आज तूने यह सिद्ध कर दिया कि शिक्षा किसी से भी ग्रहण की जा सकती है फिर भले वह "कालू" ही क्यों न हो, ये दुनिया तेरे भक्ति भाव को सदैव याद रखेगी, मैं धन्य हुआ तेरे जैसा महान शिष्य पाकर, मेरा आशीर्वाद है कि तू एक दिन "गुरुओं का गुरु" बनेगा !!

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