वो घूंघट डाल कर करते रहे, बातें मोहब्बत की
अब कैसे मान लें हम, चाँद से बातें हुई होंगी !!
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चलो खुशनसीबी है, किसी पर किसी की नजर तो है
वरना कुछ लोग ऐसे भी हैं जो नजर ही नहीं रखते !
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कोई जुदा होकर खुदा है, तो कोई खुदा होकर जुदा है
सच ! बता तू ही मुझे अब, कि तू जुदा है या खुदा है !
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न तो मैं कमजोर था, और न ही तुम बलवान थे
न जीत थी न हार थी, बस थोड़ी-बहुत तकरार थी !
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ठीक ही है कोई जनसंघी तो कोई बजरंगी है
नहीं तो सब के सब, भ्रष्ट - घपलेबाज होते !
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लुट रही लुटिया है देखो, फिर भी दमदार हैं
पकड़ लंगोटी हाँथ में, दौड़े-पड़े सरकार हैं !
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न तो वो मुझसे डरा, और न ही मैं उससे डरा
पर वो भी खामोश था, और मैं भी खामोश था !
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भ्रष्टतम भ्रष्ट लोगों की हुकूमत हो जहां
कैसे मुमकिन हो, वहां लोकपाल बैठे !
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हमने इतना ही है जाना, तुम महकते हो सदा
इश्क हो, या इबादत, सब में बसते तुम सदा !
6 comments:
समय के हिसाब से बढ़िया ग़ज़ल...
कोई जुदा होकर खुदा है, तो कोई खुदा होकर जुदा है
सच ! बता तू ही मुझे अब, कि तू जुदा है या खुदा है !
Wah! Kya gazab likha hai!
सुन्दर रचना
इस बार बहुत शानदार..
जहाँ भी बैठे, देश का भला हो।
वाह वाह
सारे शेर अछ्छे है
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