Monday, May 30, 2011

... उलझन !

कल की तरह
आज भी
मैं
इंतज़ार करता रहा
तुम्हारा
तुम, ना जाने, क्यों,
भूल गए
किये वादे को
या फिर तुम, कहीं
किसी, उलझन में तो नहीं हो !
तुम्हारे, वादे भूलने से
या तुम्हारे ना आने से
उतना दुखी नहीं हूँ
जितना यह सोचकर
चिंतित हूँ कि
कहीं तुम, किसी
गंभीर समस्या
या किसी गंभीर उलझन में तो नहीं हो !!

4 comments:

संजय भास्‍कर said...

हर शब्‍द बहुत कुछ कहता हुआ, बेहतरीन अभिव्‍यक्ति के लिये बधाई के साथ शुभकामनायें ।

राज भाटिय़ा said...

तुम्हारे, वादे भूलने से
या तुम्हारे ना आने से
उतना दुखी नहीं हूँ
जितना यह सोचकर
चिंतित हूँ कि
कहीं तुम, किसी
गंभीर समस्या
या किसी गंभीर उलझन में तो नहीं हो !!
प्यार कही इसे ही तो नही कहते?

Arun sathi said...

सुंदर अभिव्यक्ति।

प्रवीण पाण्डेय said...

संवाद में रुक जाना, भय हो जाता है।