Sunday, April 3, 2011

सरकारी संत और अखाड़े तो मर्जी के मालिक हुए हैं !!

मेरी जिन्दगी एक सुहाना सफ़र लगती है
हर कदम, माँ की दुआएं, सांथ चलती हैं !
...
दोस्त ये सच है जल जल के, अब मैं राख बन चला हूँ
यार ज़रा संभल के फेंक मुझको, कहीं अंगार दबा होगा !
...
'रब' पे भरोसा रख, वो सब सुन रहा है
सच ! दुआएं तेरी, बेअसर नहीं होंगी !
...
सच ! हम खुद को तो, किसी भी तरह सुधार ही लेंगे
पर जो सारे जहां को बिगाड़ने में मस्त हैं, उनका क्या !
...
लाख बुरा सही सारा ज़माना, हमें उससे क्या
तू थोड़ा ही सही, बता उसकी सजा है क्या !
...
क्या बात है, बड़ी खुबसूरती से महफ़िल सजाई है
चेहरे चेहरे में छिपे, असल चेहरे की बारी आई है !
...
चलो देर से ही सही, तिरे जज्बात तो बाहर आए
उस दिन सही, तुझे हम आज, याद तो आए !
...
कोई हांथों से चेहरा, ढक-ढक कर मुस्कुरा रहा है
तब ही तो जीत कर भी, जाने कहाँ छिपा है !!
...
सच ! ऐसा सुना है, वे लोग ही अच्छा लिखते हैं जो
अखबारों, पत्रिकाओं, किताबों में छपते-छपाते हैं !
...
अब क्या कहें, क्या मत, और किस बात का अभिमत
सरकारी संत और अखाड़े तो मर्जी के मालिक हुए हैं !!

No comments: