पत्थरों को तकदीर से तोड़ रहे हैं
कोई गम नहीं, शान से जी रहे हैं !
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बुरी नजर से कौन बचाए, अब वतन के पाक दामन को
उफ़ ! किसी से सुना है, नापाक लोगों की हुकूमत है !
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जमीर बेच दिया, कोई गम नहीं
बहुत शान है, स्वीस बैंक में खाता है !
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चलो आज आजमा के देख लिया जाए
सच ! दोस्ती अच्छी है, या दुश्मनी !
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काश ! दोस्ती को जुर्म मान लिया गया होता
कम से कम किसी पे, एतवार तो न हुआ होता !
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अभी ज्यादा, कुछ बिगड़ा नहीं है
अगर चाहें, लोकतंत्र बचा लें हम !
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चलो चलते रहें, बढ़ते रहें, मोहब्बत का सफ़र है
जन्नत सा लगे है, ये हरियाली और ये रास्ता है !
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किसी को हो गया है गुमां चमकती सूरत पर
काश ! सीरत में, मिश्री घुली होती !
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सच ! किसी को नजर नहीं आईं खूबियाँ, और प्यार मेरा
किसी और की बदसलूकियों पे, मैं बेवजह बदनाम होता रहा !
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गरीब हैं तो क्या, ईश्वर ने बांटी है बादशाहत हमको
सच ! समय-वे-समय अमीरों को, चाय पिलाते रहे हैं !
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वाह वाह ! खुदा खैर तुम नींद से जागे तो
क्या सुबह, क्या शाम, ख़्वाबों में रहते हो !
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अफसोस ! तुम मिलकर भी न मिले
उफ़ ! अब समझे, ये दिल टूटा क्यों है !
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कालाबाजारी, भ्रष्टाचारी, घोटालेबाजी, जय हो
उफ़ ! सच बोलने वालों को सजा दे दो, देश थर्रा जाए !
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ये माना देश दुकां है उनकी, क्या खूब व्यापारी हैं
सच ! मान, ईमान, स्वाभीमान, परचून हुए हैं !
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नई संस्कृति, नई रश्में, सिर-आंखों पे हैं हुक्मरानों की
सच ! देश को बेच बेच के, विदेश में जमीं खरीद रहे हैं !
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11 comments:
नई संस्कृति, नई रश्में, सिर-आंखों पे हैं हुक्मरानों की
सच ! देश को बेच बेच के, विदेश में जमीं खरीद रहे हैं
प्रभावी अभिव्यक्ति...... यही हो रहा है.....
सच बोलने वालों को सजा दे दो....बहुत खूब.
sसच ही सजा का हकदार होता है..
ये माना देश दुकां है उनकी, क्या खूब व्यापारी हैं
सच ! मान, ईमान, स्वाभीमान, परचून हुए हैं !....
आज की रीटेल संस्कृति पर बढ़िया ग़ज़ल..
कालाबाजारी, भ्रष्टाचारी, घोटालेबाजी, जय हो
उफ़ ! सच बोलने वालों को सजा दे दो, देश थर्रा जाए !
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ये माना देश दुकां है उनकी, क्या खूब व्यापारी हैं
सच ! मान, ईमान, स्वाभीमान, परचून हुए हैं !
बहुत खूब ...
पत्थरों को तकदीर से तोड़ रहे हैं
कोई गम नहीं, शान से जी रहे हैं
bahut sateek rachana ....badhai uday bhai ...
अफसोस ! तुम मिलकर भी न मिले
उफ़ ! अब समझे, ये दिल टूटा क्यों है !
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कालाबाजारी, भ्रष्टाचारी, घोटालेबाजी, जय हो
उफ़ ! सच बोलने वालों को सजा दे दो, देश थर्रा जाए !
बहुत सुन्दर्।
पत्थरों को तकदीर से तोड़ रहे हैं
......कोई गम नहीं, शान से जी रहे हैं
जमीर बेच दिया, कोई गम नहीं
बहुत शान है, स्वीस बैंक में खाता है!
सच्ची बात है कि शान पैसे से होती है. जम़ीर की शान को कौन देखता है. जिनका पैसा लूट कर वहाँ जमा कराया गया है वे अनपढ़ हैं. उन्हें फिलहाल बेवकूफ बनाना आसान है.
स्विस सहारा।
कालाबाजारी, भ्रष्टाचारी, घोटालेबाजी, जय हो
उफ़ ! सच बोलने वालों को सजा दे दो, देश थर्रा जाए !
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लेकिन कब तक...... एक दिन मरेगे यह सब कमीने सुअर की मोत तब यह पैसा इन के काम नही आयेगा, सिर्फ़ अच्छॆ कर्म ही काम आयेगे, जो इन्होने किये ही नही
बहुत सुंदर रचना धन्यवाद
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