तीन खड़े हैं, तीन बढे हैं
तीन कर रहे मौज हैं यारा !
कौन कह रहा, कौन सुन रहा
एक गूंगा, एक बहरा है !
गूंगा भी खामोश खडा है
और बहरा भी ताक रहा है !
और एक खडा मौन हुआ है
वो तो बिलकुल अंधा है !
गूंगे-बहरों-अंधों ने मिलकर
देश का बेडागर्क किया है !
कुछ तो जय जय कार हो रहे
और कुछ जय जय कार कर रहे !
देश के तीनों बन्दर देखो
मौज-मजे में चूर हो रहे !
बहरा हाथ में लाठी लेकर
जनता को फटकार रहा है !
और गूंगे की मौज हुई है
वो सत्ता में चूर हुआ है !
अब अंधों की क्या बोलें हम
गूंगे-बहरों को खूब मजे से हांक रहे हैं !
गूंगे-बहरे-अंधे मिलकर
देश का बेडागर्क कर रहे !
है कोई जो अब इन तीनों को
जंजीरों में बाँध सके, वरना !
वरना अब क्या बोलें हम
लोकतंत्र है, लोकतंत्र है !!!
31 comments:
nice
उत्तम, अति उत्तम.
बहुत बढ़िया रचना ... अब गूंगो बहरों का ही देश हो गया है ...
गूंगों-बहरों पर राज इनके अलावा कर भी कौन सकता है...
कहने, सुनने, देखने वालों के आगे आने की जरूरत हर युग में रही है और वही कमान भी संभालते हैं.
लोकतंत्र पर अच्छा कटाक्ष
गुंगे, अंधे और बहरे ही ये देश चला रहे है।
व्यवथा पर करारा व्यंग्य !
-ज्ञानचंद मर्मज्ञ
करारा व्यंग ....जनता रुपी बन्दर अब कुछ चेत रहा है
बेहतरीन व्यंग्य्।
बेहतरीन, करारा, उत्तम, अति उत्तम, कटाक्ष !
सुन्दर चित्रण किया है आपने...अब आता रहूँगा यहाँ भी!
०विज्ञप्ति०
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बेडागर्क होने को अब बचा क्या है ...
अति उत्तम.
गूंगे-बहारों-अंधों ने मिलकर
देश का बेड़ागर्ग किया है !
सच कहा आपने ,good
करारा, उत्तम, अति उत्तम, कटाक्ष !
गूंगे-बहरे-अंधे मिलकर
देश का बेड़ागर्ग कर रहे !
बेडागर्क होने को अब बचा क्या है
वाह बेहतरीन व्यंग......
बधाई एवं आभार
uday ji
kya khoob vyangatmak purn rachna ki hai .padh kar maja aa gaya.
पहाड़ों पर नज़र आती है फिर से रूइ की चादर
हवा करती है सरगोशी बदन ये काँप जाता है
फजाओं में महकती है तिरे एहसास की खुशबू
हवा की पालकी में बैठ कर मन गुनगुनाता है
bahut -bahut hi achhi-----
poonam
है कोई जो अब इन तीनों को
जंजीरों में बाँध सके, वरना !
वरना अब क्या बोलें हम
लोकतंत्र है, लोकतंत्र है !!!
अति सुंदर
व्यवथा पर करारा व्यंग्य !
उत्तम करार व्यंग है आज के हालातों पर.....
हालात को सही परखा
लोकतंत्र है, लोकतंत्र है !!!
Goongi,bahari,andhi to janta ho rahi hai! Jantako noch khanewalon ke paas to na jane kitne indreey hain!
यह बन्दरों का है, मनुष्यों का क्या कार्य।
sahi chitran.
प्रभावशाली रचना... आभार. (शुक्रिया चर्चामंच)
देश के तीनों बन्दर देखो
मौज-मजे में चूर हो रहे ...गूंगे..बहरे...अंधे....बहुत सुंदर व्यंग
उत्तम व्यंग्य!
" बुरा मत देखो , बुरा मत सुनो , बुरा मत कहो "
गाँधी जी के सच्चे अनुयायी ...
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