आओ बढ़ें, चलो चलें
हम सब मिलकर खेल चलें !
खेल भावना से खेलें
सरहदों को भूल चलें !
खेल भावना हो हार-जीत की
सरहदों में न लड़ें - भिड़ें !
हार जीत हैं खेल के हिस्से
पर हम खेलें, मान बढाएं !
आओ बढ़ें, चलो चलें
हम सब मिलकर खेल चलें !
हर आँखों में बसे हैं सपने
खेल रहे हैं मिलकर अपने !
न कोई गोरा, न कोई काला
जीत रहा जो, वो है निराला !
जीतेंगे हम, जीत रहे हैं
मिलकर सब खेल रहे हैं !
खेल खिलाड़ी खेल रहे हैं
खेल भावना जीत रही है !
आओ बढ़ें, चलो चलें
हम सब मिलकर खेल चलें !
तुम खेलोगे, हम खेलेंगे
मान बढेगा, शान बढेगा !
तुम जीतो या हम जीतें
एक नया इतिहास बनेगा !
जीतेंगे हम खेल भावना
खेल भावना, खेल भावना !
खेल चलें, चलो चलें
हर दिल को हम जीत चलें !
आओ बढ़ें, चलो चलें
हम सब मिलकर खेल चलें !!
13 comments:
बहुत अच्छी कविता।
हिन्दी, भाषा के रूप में एक सामाजिक संस्था है, संस्कृति के रूप में सामाजिक प्रतीक और साहित्य के रूप में एक जातीय परंपरा है।
कविता तो अच्छी है, पर गीत में जरा dramaebazzi मांगता है, आज कल वैसे भी गीतों में शायरी का ज्यादा स्थान नहीं बचा, music और composition ही हावी होता है. तो उस हिसाब से तो ये lyrics जरूरत से ज्यादा अच्छे है, इसलिए वो लोग इसको edit कर देंगे !
बहुत बढिया कामनवेल्थ का थीम साँग लिखा है आपने
जय हो
बढिया गीत्।
कविता काफी अर्थपूर्ण है, और ज्यादा समकालीन ।
फ़ुरसत में .. कुल्हड़ की चाय, “मनोज” पर, ... आमंत्रित हैं!
achchha geet ban gaya hai. badhai. ise gayaa ja sakata hai.
@ girish pankaj
... शुक्रिया गिरीश भाई !!!
बहुत सुन्दर कविता।
बढ़िया गीत रच दिया है...काश!! उनकी नजर पड़े.
सच्चाई से कोसों दूर
घपला, करप्शन, घोटाला
बारिश की जांच
इन सबको तनिक सी भी
जगह नहीं दी गई
हमें बिल्कुल पसंद नहीं है।
अरे वाह!
मेरी ग़ज़ल:
मुझको कैसा दिन दिखाया ज़िन्दगी ने
बहुत बढ़िया ..
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