..... संभव है ईश्वर ने आपके लिये, आपके द्वारा प्रार्थना में चाहे गए "विशेष उद्देश्य" से हटकर "कुछ और ही लक्ष्य" निर्धारित कर रखा हो, ऎसी परिस्थिति में प्रार्थना में चाहे गए लक्ष्य तथा ईश्वर द्वारा आपके लिये निर्धारित लक्ष्य दोनों समय-बेसमय आपकी मन: स्थिति को असमंजस्य में डालने का प्रयत्न करेंगे .....
16 comments:
मन किसे स्वीकार करता है या कहें ईश्वर किस कार्य को करने के लिये अपनी मंजूरी देता है वही होता है। सब मन का खेल है, विचलित हुआ कि गया। अच्चा विचार! आचार्य जी को मेरा सादर वंदन्।
sahi kaha
बहुत ही शानदार पोस्ट
धन्यवाद
आचार्य उदय का तो जवाब नहीं
बहुत सुंदर उक्ति
gaagar me sagar. chhote mey badee baat.
अंकल आप क्या हो मैं समझ नहीं पा रहा हूं।
अंकल आप क्या हो मैं समझ नहीं पा रहा हूं।
अंकल आप क्या हो मैं समझ नहीं पा रहा हूं।
अंकल आप क्या हो मैं समझ नहीं पा रहा हूं।
अंकल आप क्या हो मैं समझ नहीं पा रहा हूं।
अंकल आप क्या हो मैं समझ नहीं पा रहा हूं।
अंकल आप क्या हो मैं समझ नहीं पा रहा हूं।
आचार्य जी को नमन.
behtreen...
बहुत देर से पहुँच पाया ....माफी चाहता हूँ..
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