Saturday, June 5, 2010

शेर

अलग जगह है, ये दुनिया
जहां फ़रिश्तों को पागल कहते हैं।
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कभी तौला - कभी मासा , अजब हैं रंग फ़ितरत के
करें खुद गल्तियां, मढें इल्जाम दूजे पे ।
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क्या बताएं अब तुम्हें, क्यूं भीड में तन्हा हैं हम
दोस्तों की भीड है, पर सभी खुदगर्ज हैं ।

7 comments:

डॉ. महफूज़ अली (Dr. Mahfooz Ali) said...

बहुत खूब....

सूर्यकान्त गुप्ता said...

अरे अरे हम तो कुछ और समझ बैठे थे हेडिन्ग देख कर। चलिये कोई बात नही पर क्या शेर मारा है! सुन्दर्।

Udan Tashtari said...

कभी तौला - कभी मासा , अजब हैं रंग फ़ितरत के
करें खुद गल्तियां, मढें इल्जाम दूजे पे ।

-वाह! क्या बात कही है!!

अरुणेश मिश्र said...

वाह ! ! ! वाह ! ! !
बहुत खूब ।

संजय भास्‍कर said...

....बहुत खूब, लाजबाब !

आचार्य उदय said...

आईये जानें .... मन क्या है!

आचार्य जी

अर्चना तिवारी said...

दोस्तों की भीड है, पर सभी खुदगर्ज हैं ।

सही कहा..सुंदर रचना