एक ब्लागर मित्र का फ़ोन आया .... घर-परिवार .... अपनी-तुपनी .... इधर-उधर की बात-चीत हुई ... फ़िर उसने पूछा ललित शर्मा जी ने ब्लागिंग को अलविदा कह दिया ... वो तो एक अच्छे लेखक हैं ... मैंने कहा ... अरे कोई विशेष बात नहीं है भाईचारे व अपनेपन मे कभी-कभी छोटी-मोटी बात हो जाती है .... अनिल भाई और ललित भाई दोनो धुरंधर ब्लागर है, आपस में बहुत मधुरता भी है.... कोई छोटी-मोटी बात आपस मे खटक गई होगी.... देर-सबेर खटास दूर हो जायेगी .... फ़िर दोनों एक साथ "मार्निंग वाल्क" करते नजर आयेंगे ।
..... खैर छोडो और सुना क्या हाल है ..... हाल-चाल तो सब ठीक हैं श्याम भाई .... पर एक बात समझ में नहीं आई ...अब क्या हो गया ... क्या डा मयंक सठिया गये हैं ? ......अरे वही "शब्दों का दंगल" बाले .... क्या हुआ उनको .... एक ओर सारे ब्लागजगत में ललित शर्मा को पुन: ब्लागिंग के लिये आमंत्रित कर रहे हैं तो दूसरी ओर डा. मयंक अकेले ऎसे व्यक्ति हैं जो ललित शर्मा को "ऎलानिया तौर" पर "भावभीनी विदाई" देते हुये उनके निर्णय का "स्वागत" कर रहे हैं .... उनकी पोस्ट से ऎसा लग रहा है कि वे बहुत "प्रसन्न" हैं ... बाकायदा "हार-वार" पहना कर फ़ोटो लगाई है ... ऎसा लग रहा है कि उनकी "प्रसन्नता" का कोई ठिकाना नहीं है या फ़िर डा मयंक सठिया गये हैं ?
.... अरे ऎसी कोई बात नहीं होगी, डा मयंक एक सुलझे हुये आदमी हैं उनका आशय ऎसा कतई नहीं हो सकता .... शायद मैं भी वहां टिप्पणी मार के आया हूं पर रात में कभी-कभी चलते-चलते भी टिप्पणी ठोक देता हूं चलो कोई बात नहीं अभी देखता हूं ..... दूध का दूध और पानी का पानी हो जायेगा .... बात-चीत करते करते पोस्ट ओपन .... हां यार तेरी बात में तो दम है ... बाकायदा फ़ूलों का हार ..... साथ में ये भी लिखा है - " ... परन्तु हम इनके निर्णय का स्वागत करते हैं ..." ..... यार ऎसा लगता है उनका आशय बुरा नहीं होगा बस यूं ही पोस्ट लगा दिये होंगे .... श्याम भाई ठीक से देखो कुछ "टिप्पणीकारों" ने भी आपत्ति जाहिर की है .... कम-से-कम आपत्ति के बाद तो पोस्ट हटा देनी चाहिये थी .... या फ़िर खेद व्यक्त करते हुये एक पोस्ट और लगा देनी चाहिये ..... श्याम भाई आप मानो तो ठीक ना मानो तो ठीक ... मुझे तो लगता है डा. मयंक सठिया गये हैं ?
17 comments:
nice
हाँ भई!
हम तो सठिया गये हैं!
साठ मे प्रवेश कर गये हैं ना!
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ललित शर्मा हमारे हमारे भी तो मित्र है!
आने वाले का स्वागत करना
और जाने वाले को
भाव-भीनी विदाई देना,
क्या हमारी सभ्यता के विरुद्ध है?
हम भी तो मान-मनव्वल ही कर रहे हैं!
मगर सभी का अंदाज जुदा-जुदा होता है!
जाकी रही भावना जैसी,
प्रभू मूरति देखी तिन तैसी!
वैसे हमारा इरादा नेक ही था!
आप लोग क्या सोचते हैं आपकी मर्जी!
फिलहाल यह पोस्ट भी पढ़ लें-
http://uchcharandangal.blogspot.com/2010/04/blog-post_11.html
अब तो यशवन्त फकीरा भी ब्लॉगिंग को बॉय-बॉय करने का ऐलान कर चुके हैं!
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आप बताइए उनको भावभीनी विदाई दूँ या नही!
डा. मयंक जी
इस पोस्ट को लगाने का मकसद आपको आहत करने का कतई नहीं है वरन एक व्यक्ति को सांत्वना देने का है जो संभवत: आपकी पोस्ट को पढकर आहत महसूस कर रहा हो!!
भावभीनी विदाई सामान्यतौर पर उसे दी जाती है जो "रिटायर" हो जाता है अथवा जो "यमदूतों" के साथ चला जाता है ....तत्कालीन उपजी परिस्थितियों व हालात के कारण दूर हो रहे व्यक्ति को "भावभीनी विदाई" देने का मतलब उसे सीधे तौर पर "रिटायर" घोषित कर देना अथवा मार देना है!!
श्याम भाई!
"मित्र की पीठ में छुरा घोंपना" और "मुँह में राम बगल में छुरी" शायद इसी को कहते हैं!
इरादा नेक था या क्या था यह तो स्पष्ट दिख रहा है। ललित जी के चित्र को फूल माला तो ऐसे पहनाया गया है जैसे कि किसी मृत व्यक्ति के चित्र को पहनाया जाता है।
श्याम जी-
इनके यहाँ मित्रों के साथ ऐसा व्यवहार करने की परम्परा है। जिन्हे ये मित्र कहते हैं उन्हे सावधान
हो जाना चाहिए। पता नही कब जीवित को माला
पहना दे क्या भरोसा।
अवधिया जी ने सही कहा है।
साठा के बाद ही तो पाठा बना जाता है|
हे सटियाये हुये मानव. इतना प्रसन्न क्युं होता है? सोच जब तुझे भी यहां से बेइज्जत करके निकाला जायेगा उस समय कोई ऐसी पोस्ट लिखके तुझको विदाई देगा तो क्या यह मित्रवत होगी?
यह घनघोर मित्र की पीठ मे छुरी भौकंने वाला कृत्य है.
अलख निरंजन.
शाश्त्री जी का यह शर्मनाक कृत्य है और यहां पर उनके द्वारा की गई टिप्पणी बेशर्मी की हद है.
अलख निरंजन.
श्याम जी .मुझे तो इस समय इसमे कोई रूचि नही है की किसने किसको कैसे विदाई दी ..मुख्य मुद्दा तो यह है की लोग इस मंच को अलविदा क्यों कह रहें ?कोई इस बात का सही खुलासा नही कर रहा है बस आपस मे उलझ रहे हैं ..किरपा करके सही बात लोगों तक पहुचाए ..चाहे कोई भी ..चाहे मयंक जी ..या आप कोई और ...अफ़सोस..!!!
ये तो विवाद पर विवाद हो गया ।
तिल का ताड़ ...... और बात का बतंगड़ कैसे बनाया जाता है ....आज समझ में आ रहा है! डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री जी ने आखिर ऐसा क्या श्राप दे दिया की आप सब लोग राशन-पानी लेकर दौड़ पड़े ? उन्होंने तो वहां स्पष्ट लिखा है -"ब्लॉग-जगत को श्री ललित शर्मा जी के पुनरागमन की बेसब्री से सदैव प्रतीक्षा रहेगी!"
श्याम कोरी जी !
चलिए अगर एक बार को मान भी लें कि शास्त्री जी ने कुछ गलत कह भी दिया तो ऐसी भाषा ? खुदा न खास्ता आपके अपने घर का कोई बुजुर्ग कुछ गलत कर दे अथवा कह दे तो आप यही कहेंगे - "बुड्ढा सठिया गया है ?"
ऊपर से आप भड़काने वाली प्रतिक्रियाओं पर मजे ले रहे हैं ?
भैया ये ब्लॉग जगत बौद्धिक नगरी है (मैं तो ऐसा मानता हूँ) ! यहाँ किसी को पत्र लिखकर ब्लॉग लेखन के लिए आमंत्रित नहीं किया गया था! ललित जी क्या बच्चे हैं जो लोगों की मान-मनुहार की आकांक्षा रखते हैं! ऐसा छुई-मुई भी क्या होना ?
प्रकाश गोविन्द जी
एक तरफ़ तो आप ये मान रहे हैं कि शास्त्री जी ने कुछ गलत कह दिया वहीं दूसरे तरफ़ आप उनके समर्थन मे बोल रहे हैं ... ये गलत बात है "चित भी मेरी पट भी मेरी....." ऎसा नही होता!!
दूसरी बात ... न तो मैं किसी को भडका रहा हूं और न ही मजे ले रहा हूं .... मजे लेना होता तो कुछ "धमाकेदार" लिख देता !!
...वैसे मैं एक नई पोस्ट लगाने की मंशा से इंटरनेट चालू किया था लगता है आपकी इस बुद्धिमतापूर्ण टिप्पणी के कारण .... !!!
रूपचन्द जी के मान-मनौवल्ल वाले इस नए अंदाज़ के क्या कहने!
श्याम जी ..इस पोस्ट में आपके द्वारा लिखी गई हर बात से पूर्णतया सहमत
आपका-मेरा बात करने का लहज़ा थोड़ा तल्ख़ ज़रूर हो सकता है लेकिन हमने बात बिलकुल सही कही है...
अपने तरीके से मैंने भी उन्हें माकूल जवाब दे दिया है
http://hansteraho.blogspot.com/2010/04/blog-post_12.html
श्याम जी ..इस पोस्ट में आपके द्वारा लिखी गई हर बात से पूर्णतया सहमत
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