एक दिन अपने आप को
'समर' में अकेला पाया
बेरोजगारी-गरीबी-रिश्वतखोरी
भुखमरी-भ्रष्टाचारी-कालाबाजारी
समस्याओं से गिरा पाया
मेरे मन में
भागने का ख्याल आया
भागने की सोचकर
चारों ओर नजर को दौडाया
पर कहीं, रास्ता न नजर आया
किंतु इनकी भूखी-प्यासी
तडफ़ती-बिलखती आंखों को
मैं जरूर भाया
फ़िर मन में भागने का ख्याल
दोबारा नहीं आया
सिर्फ़ इनसे लडने-जूझने
इन्हें हराकर
'विजेता' बनने का हौसला आया
समर में, इनके हाथ मजबूत
आंखें भूखी, इरादे बुलंद
और तरह-तरह के हथियारों से
इन्हें युक्त पाया
और सिर्फ़ एक 'कलम' लिये
इनसे लडता-जूझता पाया
मेरी 'कलम'
और
इन समस्याओं के बीच
समर आज भी जारी है
इन्हें हराकर
'विजेता' बनने का प्रयास जारी है ।
15 comments:
nice
एक अदम्य जिजीविषा का भाव कविता में इस भाव की अभिव्यक्ति हुई है।
समर जारी रहना चाहिये और यकीनन समर जीत लिया जायेगा
सुन्दर रचना
समर में, इनके हाथ मजबूत
आंखें भूखी, इरादे बुलंद
और तरह-तरह के हथियारों से
इन्हें युक्त पाया
और सिर्फ़ एक 'कलम' लिये
इनसे लडता-जूझता पाया
विपत्ति से डटकर मुकाबला करो
उससे खुब लड़ो और खुब लड़ो
वह डर कर अपने आप जगह देगी
और आप पहुंच जाओगे मंजिल तक
स्थापित हो जाओगे उस ठिकाने पर
जो आपने चुना है,
यह मैने ज्ञानियों से ही सुना है।
प
बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति ।
बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति ।
हौसले और आशावादिता पर आधारित अच्छी कविता !
बहुत सुन्दर रचना और ये प्रयास जारी रहना चाहिये धन्यवाद्
मेरी 'कलम'
और
इन समस्याओं के बीच
समर आज भी जारी है
Shayad hamare zinda hone ki wazah bhi yahi hai.
ये समर जारी रहे .......!!
मेरी 'कलम'
और
इन समस्याओं के बीच
समर आज भी जारी है........
अच्छी कविता !
पहले तो कवि ने अपने आप को रिश्वत ,भ्रष्टाचार,भुखमरी, गरीबी कालाबाज़ारी आदि से घिरा पाया और दूसरे पद मे इन जिम्मेदारियों से भाग जाने का मन हुआ (पलायनबाद) फ़िर तीसरे पद मे एक हौसला जैसे कृष्ण ने अर्जुन को गीता सुना दी हो ।यह समर न जाने कब से जारी है और न जाने कब तक रहेगा
्समर हमेशा जारी रहेगा
होसला बुलंद रहे , समर जारी रहे ।
यह समर न जाने कब से जारी है और न जाने कब तक रहेगा
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