किन हालात में मिलता है
क्या होते हैं "जज्बात" उसके
क्या हम समझते हैं ?
क्यों आया है वो सामने अपने
क्या तमन्ना है दिल में उसके
क्या सोचा हमने ?
क्या समझना चाहा हमने ?
शायद नहीं, क्यों ?
क्योंकि हमें अपनी पडी थी !
हम बोलते गये -
थोपते चले गये, उस पर
कभी हंसकर, कभी मुस्कुरा कर
और कभी खामोश बनकर !
क्या हम सही थे ?
ऎसा नहीं कि हम गलत थे !
शायद उसके "जज्बात"
हमसे बेहतर होते
इस जहां से बेहतर होते !
पर हमने उसे खामोश कर दिया
वह खामोश बनकर
खडा रहा, सुनता रहा
क्या कहता, खामोश बनकर ... !!
8 comments:
nice
वक़्त गुजरने पर हालात समझ आते हैं ,औरों के जज़्बात समझ आते हैं ,कुछ ऐसी ही स्थिति को बयान करती है आप की यह रचना.
सफल भाव अभिव्यक्ति.
आप की यह रचना.
सफल भाव अभिव्यक्ति.
शायद उसके "जज्बात"
हमसे बेहतर होते
इस जहां से बेहतर होते
पर हमने उसे खामोश कर दिया
वह खामोश बनकर
खडा रहा, सुनता रहा
क्या कहता, खामोश बनकर ।
....सफल अभिव्यक्ति.
क्यों आया है वो सामने अपने
क्या तमन्ना है दिल में उसके
क्या सोचा हमने !
क्या समझना चाहा हमने !
Bahut khoob!
शायद उसके "जज्बात"
हमसे बेहतर होते
इस जहां से बेहतर होते
पर हमने उसे खामोश कर दिया
वह खामोश बनकर
खडा रहा, सुनता रहा..
सही है ... कभी कभी इंसान दूसरे को बोलने का मौका नही देता या खुद को इतना बड़ा समझता है की किसी को कुछ नही समझता ... अच्छा लिखा है आपने ......
क्या हम सही थे
ऎसा नहीं कि हम गलत थे !
शायद उसके "जज्बात"
हमसे बेहतर होते
इस जहां से बेहतर होते
पर हमने उसे खामोश कर दिया
वह खामोश बनकर
खडा रहा, सुनता रहा
क्या कहता, खामोश बनकर ।
ati sunder.......
खडा रहा, सुनता रहा
क्या कहता, खामोश बनकर ।
....सफल अभिव्यक्ति.
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