अंधेरे की घटा लंबी है, मेरे संग दीप जलाने आजा !
भटकों को राह दिखाना कठिन है 'उदय'
पर जो भटकने को आतुर हैं, उन्हें राह दिखाने आजा !
गर बांट नही सकता खुशियां
तो बिलखतों को चुप कराने आजा !
'तिरंगे' में सिमटने को तो बहुत आतुर हैं 'उदय'
पर तू 'तिरंगे' की शान बढाने आजा !
अब जंगल में नहीं, भेडिये बसते हैं शहर में
औरत को नहीं, उसकी 'आबरू' को बचाने आजा !
मेरे संग दीप जलाने ... !
अब जंगल में नहीं, भेडिये बसते हैं शहर में
औरत को नहीं, उसकी 'आबरू' को बचाने आजा !
मेरे संग दीप जलाने ... !
11 comments:
सही बात है जो भटक चुके है उन्हे तो राह दिखाना या मार्ग पर लाना असंभव नही तो कठिन अवश्य है लेकिन जो भटकने को तैयार बैठे है उनको तो बचाया जा सकता है ।
गणतंत्र दिवस की शुभकामनायें।
सार्थक रचना।
गणतंत्र दिवस की शुभकामनायें।
गर बांट नही सकता खुशियां
तो बिलखतों को चुप कराने आजा
रचना अच्छी लगी ।
बहुत सुन्दर कविता, उदय जी. धन्यवाद.
गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनायें.......
bahut sunderbhavo kee abhivyktee....
भटकों को राह दिखाना कठिन है 'उदय'
पर जो भटकने को आतुर हैं, उन्हें राह दिखाने आजा
क्या बात कही है ..... जो भटके हुवे हैं वो सुधारना नही चाहते ..... जो भटकने वाले हैईयाँ उनको तो रोक लें ...... उम्दा बात ........ २६ जनवरी की बहुत बधाई .....
lajwaab panktiyaan!!
सुन्दर रचना श्याम जी और बहुत गहरे भाव ....:)
भटकों को राह दिखाना कठिन है 'उदय'
पर जो भटकने को आतुर हैं, उन्हें राह दिखाने आजा.............
बड़ी ही सटीक बात कही है आपने
अब जंगल में नहीं, भेडिये बसते हैं शहर में
औरत को नहीं, उसकी 'आबरू' को बचाने आजा
----very nice.
मैं थका नहीं हूं, तू हमसफ़र बनने आजा
अंधेरे की घटा लंबी है, मेरे संग दीप जलाने आजा
भटकों को राह दिखाना कठिन है 'उदय'
पर जो भटकने को आतुर हैं, उन्हें राह दिखाने आजा
Waah!
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