कदम-दर-कदम हौसला बनाये रखना, मंजिलें अभी और बांकी हैं
ये पत्थर हैं मील के गुजर जायेंगे, चलते-चलो फ़ासले अभी और बांकी हैं।
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उतर आये थे सितमगर आसमां से, जुल्म ढाने को
वो पत्थर उछाल रहे थे, और पडौसी मुस्कुरा रहे थे।
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तेरा अंदाज-ए-सितम कांटों से भी नाजुक निकला
कब आये, कब चोट पहुंचाई, कब निकले, हमें अहसास न हुआ।
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मेरे हाथों की लकीरों का, सफ़र अभी लंबा है
सुकूं की चाह तो है, पर अभी थकान बांकी है।
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गुनाह इतने किये अब प्रायश्चित मुमकिन नहीं यारा
क्या होगा कहर 'खुदा' का, सोचकर ही सिहर जाता हूं।
25 comments:
बहुत खूब ! शुभकामनायें !
तेरा अंदाज-ए-सितम कांटों से भी नाजुक निकला
कब आये, कब चोट पहुंचाई, कब निकले, हमें अहसास न हुआ ..
बेहतरीन शेर हैं ........ ये शेर तो बहुत लाजवाब है .........
कदम-दर-कदम हौसला बनाये रखना, मंजिलें अभी और बांकी हैं
ये पत्थर हैं मील के गुजर जायेंगे, चलते-चलो फ़ासले अभी और बांकी हैं।
..........................................................kya baat kahi hai, mann khush ho gaya
sabhi ek se badhkar ek lajawaab sher hain......bahut hi umda.
तेरा अंदाज-ए-सितम कांटों से भी नाजुक निकला
कब आये, कब चोट पहुंचाई, कब निकले, हमें अहसास न हुआ।
waah kya baat kahi hai.
मेरे हाथों की लकीरों का, सफ़र अभी लंबा है
सुकूं की चाह तो है, पर अभी थकान बांकी है।बेहतरीन। लाजवाब।
गुनाह इतने किये अब प्रायश्चित मुमकिन नहीं यारा
क्या होगा कहर 'खुदा' का, सोचकर ही सिहर जाता हूं।
बहुत सुंदर गजल , लाजवाब,धन्यवाद
Shyam ji aapke sher me ye khas baat lagi ki use zindgi se sidha juda paya..tasavvur me nhi...bohot khubsurat..sabse khas ye laga..
तेरा अंदाज-ए-सितम कांटों से भी नाजुक निकला
कब आये, कब चोट पहुंचाई, कब निकले, हमें अहसास न हुआ।
shukriya...
तेरा अंदाज-ए-सितम कांटों से भी नाजुक निकला
कब आये, कब चोट पहुंचाई, कब निकले, हमें अहसास न हुआ !
बेहतरीन AUR बहुत लाजवाब है!
कदम-दर-कदम हौसला बनाये रखना, मंजिलें अभी और बांकी हैं
ये पत्थर हैं मील के गुजर जायेंगे, चलते-चलो फ़ासले अभी और बांकी हैं।बेहतरीन!!
बहुत सुन्दर भाव हैं
उतर आये थे सितमगर आसमां से, जुल्म ढाने को
वो पत्थर उछाल रहे थे, और पडौसी मुस्कुरा रहे थे।
मेरे हाथों की लकीरों का, सफ़र अभी लंबा है
सुकूं की चाह तो है, पर अभी थकान बांकी है।
बहुत खूब!
महावीर शर्मा
बहुत सुन्दर रचना
बहुत बहुत आभार
बेहतरीन शेर हैं ........ ये शेर तो बहुत लाजवाब है .........
tamaam sher bahut dilchasp haiN
aapke intkhaab ki daad deta hooN
thanks shyam ji
aapne mera hosla badhaya..
सभी शेर, एक बढकर एक।
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अपना ब्लॉग सबसे बढ़िया, बाकी चूल्हे-भाड़ में।
ब्लॉगिंग की ताकत को Science Reporter ने भी स्वीकारा।
बहुत बढिया शेर मील के पत्थर गुजर जायेंगे वैसे भी किसी मंजिल पर जाना हो तो मील के पत्थर देखना भी नही चाहिये ।ये भी बहुत ही उत्तम शेर है कि हम पर पत्थर बरस रहे थे और पडोसी मुस्करा रहे थे। अन्दाज़ ए सितम भी अच्छा लगा ।और अन्तिम शेर क्या होगा खुदा का कहर ।वो कहर नही रहम करता है ’यदि आपके गुनाहों मे कमी नही है तो उसकी रहमत मे भी कमी नही है
बढिया है.
कदम-दर-कदम हौसला बनाये रखना, मंजिलें अभी और बांकी हैं
ये पत्थर हैं मील के गुजर जायेंगे, चलते-चलो फ़ासले अभी और बांकी हैं।
वाह .....बहुत सुंदर.......!!
मेरे हाथों की लकीरों का, सफ़र अभी लंबा है
सुकूं की चाह तो है, पर अभी थकान बांकी है।
waah!
bahut khuub sher kahe hain.
शेरों की एक शानदार कतार लगा दी आपने. सभी अशआर चिन्तन और कंटेंट के लिहाज़ से बेहद मजबूत हैं. आप की मेहनत स्वीकार कर रहा हूँ लेकिन एक धृष्टता भी कर रहा हूँ, मुझे आपसे थोड़ी और मेहनत की अपेक्षा है. आशा है, आप अन्यथा नहीं लेंगे.
अशआर अच्छे लगे
उतर आये थे सितमगर आसमां से, जुल्म ढाने को
वो पत्थर उछाल रहे थे, और पडौसी मुस्कुरा रहे थे।
ये शेर तो बहुत लाजवाब है ...
wah wah wah...
bahut hee sundar likha hai aapne shyaam ji...
main to aata rahunga, aap bhi mere blog pe darshan dete rahiyega ;-)
cheers!
surender.
बहुत ही लाजवाब शेर !!
वो पत्थर उछाल रहे थे, और पडौसी मुस्कुरा रहे थे।
बहुत खूबसूरत चित्रण है
आप ब्लॉग बेहद शानदार है। लेकिन अफसोस पहली बार आया। मेरा गुनाह माफ कैसे होगा, सोचकर ही सिहर जाता हूँ
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