कुछ कमियाँ ...
कुछ नादानियाँ रही होंगी
कुछ भरोसे की ...
तो कुछ आशाओं की बात रही होगी
कुछ न कुछ तो
जरूर
अटपटा ... अनसुलझा-सा ... रहा होगा
हमारे दरमियाँ
वर्ना ... टूट नहीं सकता था
रिश्ता हमारा,
क्यों ?
क्योंकि -
पंखुड़ियों-सा नहीं था
शीशे-सा नहीं था
मिट्टी-सा ... भी .... नहीं था
गर ... था ... तो
सोने-सा था ...
चांदी-सा था
रिश्ता ... हमारा ... साथ हमारा ?
कुछ न कुछ ... तो ... जरूर ... ???
~ श्याम कोरी 'उदय'
कुछ नादानियाँ रही होंगी
कुछ भरोसे की ...
तो कुछ आशाओं की बात रही होगी
कुछ न कुछ तो
जरूर
अटपटा ... अनसुलझा-सा ... रहा होगा
हमारे दरमियाँ
वर्ना ... टूट नहीं सकता था
रिश्ता हमारा,
क्यों ?
क्योंकि -
पंखुड़ियों-सा नहीं था
शीशे-सा नहीं था
मिट्टी-सा ... भी .... नहीं था
गर ... था ... तो
सोने-सा था ...
चांदी-सा था
रिश्ता ... हमारा ... साथ हमारा ?
कुछ न कुछ ... तो ... जरूर ... ???
~ श्याम कोरी 'उदय'
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