वो सियाने हैं इतने
कि -
कभी शेर, कभी भालू, तो कभी खुद को चीता समझते हैं
मगर अफसोस ..
बिच्छू देखकर ... वो बंदर से उछलते हैं !
यही तो होती है फितरत
मौका परस्तों में ...
कभी बाहों में होते हैं
कभी हाथों में होते हैं
कभी चरणों में होते है .... !!
~ उदय
कि -
कभी शेर, कभी भालू, तो कभी खुद को चीता समझते हैं
मगर अफसोस ..
बिच्छू देखकर ... वो बंदर से उछलते हैं !
यही तो होती है फितरत
मौका परस्तों में ...
कभी बाहों में होते हैं
कभी हाथों में होते हैं
कभी चरणों में होते है .... !!
~ उदय
3 comments:
आदरणीय / आदरणीया आपके द्वारा 'सृजित' रचना ''लोकतंत्र'' संवाद मंच पर 'सोमवार' २८ मई २०१८ को साप्ताहिक 'सोमवारीय' अंक में लिंक की गई है। आमंत्रण में आपको 'लोकतंत्र' संवाद मंच की ओर से शुभकामनाएं और टिप्पणी दोनों समाहित हैं। अतः आप सादर आमंत्रित हैं। धन्यवाद "एकलव्य" https://loktantrasanvad.blogspot.in/
टीपें : अब "लोकतंत्र" संवाद मंच प्रत्येक 'सोमवार, सप्ताहभर की श्रेष्ठ रचनाओं के साथ आप सभी के समक्ष उपस्थित होगा। रचनाओं के लिंक्स सप्ताहभर मुख्य पृष्ठ पर वाचन हेतु उपलब्ध रहेंगे।
बहुत खूब
सुंदर कटाक्ष।
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