Saturday, October 27, 2012

क्लीनचिट ...


ये पुरूस्कार हैं मियाँ, कोई तोहफे नहीं हैं 
कुछ तो शर्म करो, ......... देने-लेने में ?
... 
ब्लेकमेलिंग तो उनके किरदार का एक छोटा-सा हुनर है 
बस, बदकिस्मती ने, उन्हें बे-नक़ाब कर दिया है आज ? 
... 
किरदार उसका, कुछ ऐंसा था 'उदय' 
जाते-जाते ..... रुला गया है हमको !
... 
क्लीनचिट मिल गई, अब वे बेक़सूर हैं 
गर अब किसी ने, इल्जाम लगाया तो ?
... 
आज मौक़ा हंसी है, गले लग जाओ हंसकर 
क्या रक्खा है यारा, दिलों की खुन्नसों में ? 

3 comments:

सूर्यकान्त गुप्ता said...

किस्मत जब तक साथ देती है, ठीक है, कुछ भी करते जाओ ...

लेकिन कब तक !!!!! धरे जाने पर कैसा लगता है ? अच्छे विचार हैं ......

कपड़े के भीतर सभी बेनकाब हैं

प्रवीण पाण्डेय said...

अपने अपने अन्दाज़...

mridula pradhan said...

ये पुरूस्कार हैं मियाँ, कोई तोहफे नहीं हैं
कुछ तो शर्म करो, ......... देने-लेने में ?
bahut achchi line.....