ये पुरूस्कार हैं मियाँ, कोई तोहफे नहीं हैं
कुछ तो शर्म करो, ......... देने-लेने में ?
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ब्लेकमेलिंग तो उनके किरदार का एक छोटा-सा हुनर है
बस, बदकिस्मती ने, उन्हें बे-नक़ाब कर दिया है आज ?
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किरदार उसका, कुछ ऐंसा था 'उदय'
जाते-जाते ..... रुला गया है हमको !
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क्लीनचिट मिल गई, अब वे बेक़सूर हैं
गर अब किसी ने, इल्जाम लगाया तो ?
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आज मौक़ा हंसी है, गले लग जाओ हंसकर
क्या रक्खा है यारा, दिलों की खुन्नसों में ?
3 comments:
किस्मत जब तक साथ देती है, ठीक है, कुछ भी करते जाओ ...
लेकिन कब तक !!!!! धरे जाने पर कैसा लगता है ? अच्छे विचार हैं ......
कपड़े के भीतर सभी बेनकाब हैं
अपने अपने अन्दाज़...
ये पुरूस्कार हैं मियाँ, कोई तोहफे नहीं हैं
कुछ तो शर्म करो, ......... देने-लेने में ?
bahut achchi line.....
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