Sunday, October 28, 2012

यादें ...


देर सबेर ही सही, उन्हें ..... हम याद तो आये 
भले चाहे उन्हें, खुदगर्जी ले आई हो हम तक ?
... 
कुछ तो वजह जरुर होगी, बेरुखी की 
वर्ना, मिले मौके को, वे हाँथ से जाने नहीं देते ?
... 
कमबख्त, बहुत सख्त हैं, यादें तेरी 
छू-छू कर, चूर-चूर कर देती हैं मुझे ? 
... 
आज का दौर, खरीद-फरोख्त का दौर है दोस्त 
बस, कीमतों में ....... तनिक तनिक फेर है ? 

1 comment:

प्रवीण पाण्डेय said...

विस्तार बढ़ा है, खरीद की वस्तुओं का..