Tuesday, February 21, 2012

... दो घूँट तुम भी विषपान करो !

जिस शहर में रोज साहित्यिक चका-चौंध है
मेरी बस्ती, वहां से बहुत दूर है 'उदय' !
...
न इतराओ खुद पे, और न ही तुम घमंड करो
आओ संग मेरे, दो घूँट तुम भी विषपान करो !
...
क्या गजब किरदार है उसका 'उदय'
वो हंसता है या रोता है, मालुम नहीं पड़ता !

3 comments:

प्रवीण पाण्डेय said...

एक बार यही निश्चित हो जाता कि किस बात पर हँसना है किस बात पर रोना है..

लोकेन्द्र सिंह said...

जिस शहर में रोज साहित्यिक चका-चौंध है
मेरी बस्ती, वहां से बहुत दूर है

mridula pradhan said...

wah......