"चलो अच्छा हुआ, जो तुम मेरे दर पे नहीं आए / तुम झुकते नहीं, और मैं चौखटें ऊंची कर नही पाता !"
एक बार यही निश्चित हो जाता कि किस बात पर हँसना है किस बात पर रोना है..
जिस शहर में रोज साहित्यिक चका-चौंध हैमेरी बस्ती, वहां से बहुत दूर है
wah......
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एक बार यही निश्चित हो जाता कि किस बात पर हँसना है किस बात पर रोना है..
जिस शहर में रोज साहित्यिक चका-चौंध है
मेरी बस्ती, वहां से बहुत दूर है
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