Thursday, February 9, 2012

... खुद से जुदा-जुदा सा है !

लोग कहते हैं, हूँ मैं दीवाना तेरा
कैसे कुछ कह दूं, जब तूने कुछ कहा नहीं मुझसे !
...
हर चेहरे में एक चेहरा छिपा-छिपा सा है
हकीकत में इंसा खुद से जुदा-जुदा सा है !
...
जात-पात के ढोल-नगाड़े, कितने झूठे-सच्चे नारे
आँगन-आँगन माथा टेकें, वोट खातिर नेता सारे !
...
अगर चाहो तो चाहो, न चाहो तो न चाहो
मर्जी तुम्हारी है, हमें एतराज कैसा !!
...
न तो किसी से उम्मीदें थीं, और न ही कोई आसरा बना
वक्त बदलता रहा, हम बदलते रहे !!

2 comments:

सदा said...

हर चेहरे में एक चेहरा छिपा-छिपा सा है
हकीकत में इंसा खुद से जुदा-जुदा सा है !
बहुत सही कहा है आपने ..

प्रवीण पाण्डेय said...

बदलना तो सतत लगा रहता है।