लोग कहते हैं, हूँ मैं दीवाना तेरा
कैसे कुछ कह दूं, जब तूने कुछ कहा नहीं मुझसे !
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हर चेहरे में एक चेहरा छिपा-छिपा सा है
हकीकत में इंसा खुद से जुदा-जुदा सा है !
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जात-पात के ढोल-नगाड़े, कितने झूठे-सच्चे नारे
आँगन-आँगन माथा टेकें, वोट खातिर नेता सारे !
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अगर चाहो तो चाहो, न चाहो तो न चाहो
मर्जी तुम्हारी है, हमें एतराज कैसा !!
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न तो किसी से उम्मीदें थीं, और न ही कोई आसरा बना
वक्त बदलता रहा, हम बदलते रहे !!
2 comments:
हर चेहरे में एक चेहरा छिपा-छिपा सा है
हकीकत में इंसा खुद से जुदा-जुदा सा है !
बहुत सही कहा है आपने ..
बदलना तो सतत लगा रहता है।
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