"चलो अच्छा हुआ, जो तुम मेरे दर पे नहीं आए / तुम झुकते नहीं, और मैं चौखटें ऊंची कर नही पाता !"
आपाधापी से और शोरगुल से उकताया मन... पल भर के सुकून के लिए बेताब होता है। जबकि इसे पता नहीं एकान्त और शान्ति अंतर के तूफानों को और भी उघाड़ देता है।
शोर के बाद सन्नाटा सुहाता है।
वाह! कम शब्दों में बहुत कुछ कह दिया आपने!
mahsoos kerne do
शोर से ज्यादा सन्नाटा ही अच्छा है...
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5 comments:
आपाधापी से और शोरगुल से उकताया मन... पल भर के सुकून के लिए बेताब होता है। जबकि इसे पता नहीं एकान्त और शान्ति अंतर के तूफानों को और भी उघाड़ देता है।
शोर के बाद सन्नाटा सुहाता है।
वाह! कम शब्दों में बहुत कुछ कह दिया आपने!
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