उनके हौंठों पे खामोशी, औ नजरें बेचैन हैं
कोई समझाए हमें, ये कैसी मोहब्बत है !!
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कहने को तो वो हमें, अपना दोस्त कहता फिरे है
पर, कई दिनों से वो छिप-छिप के घूमता दिखे है !
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हमारी खामोशी भी उन्हें, न जाने क्यूँ चुभने लगी थी
आए, और आते ही, हमें बेवफा कह दिया !!
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साहित्य की आड़ में, खूब नाटक-नौटंकी चल रही हैं 'उदय'
क्या तमगे बांटना और बटोरना, ही आज का साहित्य है ?
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क्या गम, क्या तुम, क्या हम !
कुछ खामोशी, बेहतर !!
5 comments:
har sher apne aap mein poore bhav samete hue hai..khoob!!
क्या गम, क्या तुम, क्या हम !
कुछ खामोशी, बेहतर !!
good one...
sabhi sher bahut achche hai antim panktiyan seedhe dil ko chhooti hain.
सच कहा थोडी खामोशी भी जरुरी है
बेहतरीन रचना ...
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bilkul sach... khamoshi to bhaut kuch kah jaati hai.....
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