Tuesday, January 10, 2012

... कुछ खामोशी, बेहतर !

उनके हौंठों पे खामोशी, औ नजरें बेचैन हैं
कोई समझाए हमें, ये कैसी मोहब्बत है !!
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कहने को तो वो हमें, अपना दोस्त कहता फिरे है
पर, कई दिनों से वो छिप-छिप के घूमता दिखे है !
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हमारी खामोशी भी उन्हें, न जाने क्यूँ चुभने लगी थी
आए, और आते ही, हमें बेवफा कह दिया !!
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साहित्य की आड़ में, खूब नाटक-नौटंकी चल रही हैं 'उदय'
क्या तमगे बांटना और बटोरना, ही आज का साहित्य है ?
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क्या गम, क्या तुम, क्या हम !
कुछ खामोशी, बेहतर !!

5 comments:

***Punam*** said...

har sher apne aap mein poore bhav samete hue hai..khoob!!

vidya said...

क्या गम, क्या तुम, क्या हम !
कुछ खामोशी, बेहतर !!

good one...

Rajesh Kumari said...

sabhi sher bahut achche hai antim panktiyan seedhe dil ko chhooti hain.

मेरा मन पंछी सा said...

सच कहा थोडी खामोशी भी जरुरी है
बेहतरीन रचना ...
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विभूति" said...

bilkul sach... khamoshi to bhaut kuch kah jaati hai.....